सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण, जगत के पालनकर्ता, मुरलीधर, यशोदानंदन और गीता उपदेशक के रूप में जाने जाते हैं। उनके नाम जितने प्यारे हैं, उतने ही रहस्यमयी भी। शास्त्रों में श्रीकृष्ण के 108 दिव्य नामों का उल्लेख मिलता है, जिनमें हर नाम उनके किसी विशेष गुण, रूप, लीला या भूमिका से जुड़ा हुआ है। आपको बता दें, इन दिनों सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कथावाचक अनिरुद्धाचार्य से जुड़ा एक वीडियो वायरल हो रहा है।
वीडियो में देखा जा सकता है कि अखिलेश यादव कथावाचक अनिरुद्धाचार्य से पूछते हैं भगवान श्रीकृष्ण का पहला नाम क्या था ? जिसका जवाब कथावाचक अनिरुद्धाचार्य यह कहकर देते हैं कि भगवान् के तो कई नाम हैं, उनका पहला नाम कन्हैया था। जिसके बाद अखिलेश कहते हैं, ‘आपका धन्यवाद, आपका रास्ता अलग है और हमारा अलग’।
इसी सन्दर्भ में आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण का पहला नाम क्या था ? और भगवान् श्री कृष्ण के 108 नाम कौन से हैं।
क्या कहता है धर्म शास्त्र
हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों जैसे श्रीमद्भागवत पुराण, हरिवंश पुराण और महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। इन शास्त्रों के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगरी में हुआ था, जहां वे वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान के रूप में अवतरित हुए। जन्म लेते ही उन्हें एक संकट से गुजरना पड़ा क्योंकि मथुरा पर अत्याचारी कंस का आतंक छाया हुआ था, जो देवकी की संतानों को काल के मुंह में पहुंचा रहा था। शास्त्रों के अनुसार, श्रीकृष्ण का मूल नाम स्वयं उनके पिता वसुदेव ने ‘कृष्ण’ रखा था।
श्रीमद्भागवत पुराण में भी मिलता है उल्लेख
श्रीमद्भागवत पुराण में इसका स्पष्ट उल्लेख है, जहां वसुदेव अपने पुत्र के रंग और दैवीय गुणों को देखकर उन्हें ‘कृष्ण’ नाम से संबोधित करते हैं। ‘कृष्ण’ शब्द का अर्थ होता है गहरे रंग वाला, आकर्षक, सर्वगुणसंपन्न। यह नाम न केवल उनके श्याम वर्ण को दर्शाता है, बल्कि उनके सम्मोहक व्यक्तित्व और दिव्यता का भी प्रतीक है। कुछ वैष्णव परंपराओं और शास्त्रीय टीकाओं में यह भी बताया गया है कि वसुदेव ने उन्हें ‘वासुदेव’ कहकर भी पुकारा, जो कि ‘वासुदेव के पुत्र’ के रूप में प्रयोग होता है। यही कारण है कि बाद में उनका एक प्रचलित नाम बना वासुदेव-कृष्ण हुआ।
संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि की कृतियों में भी ‘वासुदेव’ को एक स्वतंत्र देवता के रूप में मान्यता दी गई है, जो श्रीकृष्ण के विशिष्ट रूप का प्रतीक है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ‘वासुदेव’ नाम केवल एक पारिवारिक संबोधन नहीं, बल्कि एक पूजनीय आध्यात्मिक पहचान भी थी।
भगवान श्री कृष्ण के 108 नाम
1. कृष्ण
2. कमलनाथ
3. वासुदेव
4. सनातन
5. वसुदेवात्मज
6. पुण्य
7. लीलामानुष विग्रह
8. श्रीवत्स कौस्तुभधराय
9. यशोदावत्सल
10. हरि
11. चतुर्भुजात्त चक्रासिगदा
12. सङ्खाम्बुजा युदायुजाय
13. देवाकीनन्दन
14. श्रीशाय
15. नन्दगोप प्रियात्मज
16. यमुनावेगा संहार
17. बलभद्र प्रियनुज
18. पूतना जीवित हर
19. शकटासुर भञ्जन
20. नन्दव्रज जनानन्दिन
21. सच्चिदानन्दविग्रह
22. नवनीत विलिप्ताङ्ग
23. नवनीतनटन
24. मुचुकुन्द प्रसादक
25. षोडशस्त्री सहस्रेश
26. त्रिभङ्गी
27. मधुराकृत
28. शुकवागमृताब्दीन्दवे
29. गोविन्द
30. योगीपति
31. वत्सवाटि चराय
32. अनन्त
33. धेनुकासुरभञ्जनाय
34. तृणी-कृत-तृणावर्ताय
35. यमलार्जुन भञ्जन
36. उत्तलोत्तालभेत्रे
37. तमाल श्यामल कृता
38. गोप गोपीश्वर
39. योगी
40. कोटिसूर्य समप्रभा
41. इलापति
42. परंज्योतिष
43. यादवेंद्र
44. यदूद्वहाय
45. वनमालिने
46. पीतवससे
47. पारिजातापहारकाय
48. गोवर्थनाचलोद्धर्त्रे
49. गोपाल
50. सर्वपालकाय
51. अजाय
52. निरञ्जन
53. कामजनक
54. कञ्जलोचनाय
55. मधुघ्ने
56. मथुरानाथ
57. द्वारकानायक
58. बलि
59. बृन्दावनान्त सञ्चारिणे
60. तुलसीदाम भूषनाय
61. स्यमन्तकमणेर्हर्त्रे
62. नरनारयणात्मकाय
63. कुब्जा कृष्णाम्बरधराय
64. मायिने
65. परमपुरुष
66. मुष्टिकासुर चाणूर मल्लयुद्ध विशारदाय
67. संसारवैरी
68. कंसारिर
69. मुरारी
70. नाराकान्तक
71. अनादि ब्रह्मचारिक
72. कृष्णाव्यसन कर्शक
73. शिशुपालशिरश्छेत्त
74. दुर्यॊधनकुलान्तकृत
75. विदुराक्रूर वरद
76. विश्वरूपप्रदर्शक
77. सत्यवाचॆ
78. सत्य सङ्कल्प
79. सत्यभामारता
80. जयी
81. सुभद्रा पूर्वज
82. विष्णु
83. भीष्ममुक्ति प्रदायक
84. जगद्गुरू
85. जगन्नाथ
86. वॆणुनाद विशारद
87. वृषभासुर विध्वंसि
88. बाणासुर करान्तकृत
89. युधिष्ठिर प्रतिष्ठात्रे
90. बर्हिबर्हावतंसक
91. पार्थसारथी
92. अव्यक्त
93. गीतामृत महोदधी
94. कालीयफणिमाणिक्य रञ्जित श्रीपदाम्बुज
95. दामोदर
96. यज्ञभोक्त
97. दानवेन्द्र विनाशक
98. नारायण
99. परब्रह्म
100. पन्नगाशन वाहन
101. जलक्रीडा समासक्त गोपीवस्त्रापहाराक
102. पुण्य श्लॊक
103. तीर्थकरा
104. वेदवेद्या
105. दयानिधि
106. सर्वभूतात्मका
107. सर्वग्रहरुपी
108. परात्पराय