इस वर्ष अगस्त महीने में हुई अतिवृष्टि ने जिले में बड़ी मात्रा में फसलों को नुकसान पहुँचाया है। प्रारंभिक सर्वेक्षण के अनुसार 67,164 हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें प्रभावित हुई हैं। वर्तमान में संयुक्त पंचनामे की प्रक्रिया जारी है, लेकिन प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे किसान अब भी सरकारी सहायता की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मई के अंत में तीन बार असमय बारिश हुई, जिसके बाद जून में बारिश की कमी ने किसानों को संकट में डाल दिया। मृगनक्षत्र के दौरान भी बुआई योग्य बारिश नहीं हुई, जिससे कई क्षेत्रों में बुआई रुकी रही। जून के अंत में अचानक अतिवृष्टि हुई और फिर जुलाई व अगस्त के अंतिम सप्ताह में तेज बारिश और आंधी ने सोयाबीन और कपास जैसी प्रमुख फसलों को बर्बाद कर दिया।
अगस्त में अतिवृष्टि प्रभावित मंडल
जिले के 52 मंडलों में से 10 मंडलों में भारी बारिश दर्ज की गई। जिसमें अकोला – 77.88 मिमी, घुसर – 82.80 मिमी, दहिहंडा – 99.80 मिमी, बोरगांव – 82.80 मिमी, पलसो – 98.50 मिमी, सांगलुद – 82.80 मिमी, कौलखेड – 90.30 मिमी, निंभा – 126।30 मिमी, माना – 67.30 मिमी, आलेगांव – 74 मिमी का समावेश है।
जुलाई की अतिवृष्टि से भी नुकसान
जुलाई में हुई अतिवृष्टि से 7,031 हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें प्रभावित हुई थीं। 11,600 किसानों को नुकसान हुआ और 6.21 करोड़ की राहत राशि की आवश्यकता बताई गई। इस पर राजस्व, कृषि और जिला परिषद की संयुक्त टीमों द्वारा पंचनामे किए गए हैं।
प्रभावित फसलें और क्षेत्र
खरीफ सीजन में 7,309.34 हेक्टेयर असिंचाई क्षेत्र की फसलें प्रभावित हुईं, जिनमें कपास – 188.7 हेक्टेयर, सोयाबीन – 5,052 हेक्टेयर, तुअर – 1,337 हेक्टेयर, मूंग – 3.8 हेक्टेयर, उड़द – 4.7 हेक्टेयर, अन्य फसलें – 22 हेक्टेयर, फलबागें – 1.19 हेक्टेयर (3 किसान प्रभावित) शामिल हैं।
किसानों की स्थिति और मांग
प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे 11,593 किसानों को अब भी सरकारी मदद की प्रतीक्षा है। फसलें जमीन पर बिछ गई हैं, खेतों में पानी भर गया है और कर्ज लेकर खेती करने वाले किसानों के सामने अब भविष्य की चिंता खड़ी हो गई है। किसानों की मांग है कि राहत राशि जल्द से जल्द वितरित की जाए ताकि वे फिर से खेती की तैयारी कर सकें।