खानपान की चीजों को ले कर भी लोगों के बीच ऐसी आम धारणाएं बन जाती हैं कि अमूमन सच ही लगने लगती हैं। इन्हीं में से एक धारणा मैदा के इर्द-गिर्द भी बनी हुई है। बचपन से ही आपने ये तो जरूर सुना होगा कि मैदा खाने से वो पेट में जा कर आंतों में चिपक जाती है। मैदा के बाकी किसी नुकसान के बारे में कोई भले ही ना जनता हो लेकिन ये आंतों में चिपकने वाली बात हर एक को मालूम होती ही है। लेकिन क्या इस बात में कुछ सच्चाई भी है? क्या मैदा को व्हाइट पॉइजन यानी सफेद जहर कहने के पीछे यही सबसे बड़ी वजह है या कुछ और भी चीजें हैं, जिनकी वजह से अक्सर मैदा ना खाने की सलाह दी जाती है? आइए आज इन्हीं सब चीजों पर बात करते हैं।
क्या वाकई आंतों में चिपक जाती है मैदा?
मैदा ना खाने की सबसे बड़ी वजह जो लोग अक्सर देते हैं, वो यही है कि मैदा पेट में जा कर आंतों में चिपक जाती है। हालांकि बता दें इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। दरअसल आप कभी भी मैदा को कच्चा नहीं खाते हैं, हमेशा उसे स्टीम कर के या फिर फ्राई कर के ही खाया जाता है। ऐसे में मैदा के आंतों में जमने का सवाल ही नहीं उठता। यहां तक कि अगर मैदा को यूं ही कच्चा भी खा लिया जाए तो हमारे पेट में पाचन प्रक्रिया के दौरान वह सिंपल कार्बोहाइड्रेट के रूप में आसानी से एब्जॉर्ब हो जाती है। इसीलिए मैदा खाना खराब है क्यों ये आंतों में जम जाते है, ये तर्क तो बिल्कुल मिथ है।
मैदा खाना क्यों माना जाता है बुरा?
अगर आपको भी यही लगता है कि जब मैदा आंतों में जमती भी नहीं तो इसे खाने के भला क्या ही नुकसान हो सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों एक्सपर्ट्स मैदा को डाइट से निकालने पर इतना जोर देते हैं। दरअसल मैदा को गेहूं की बाहरी परत को हटाकर तैयार किया जाता है। इस दौरान इसके अधिकतर पोषक तत्व और फाइबर खत्म हो जाते हैं। फाइबर ना के बराबर होने के कारण ये पेट के लिए बिल्कुल भी अच्छी नहीं होती। इसके अलावा मैदा शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल और मोटापा बढ़ाने का काम भी करती है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी काफी ज्यादा होता है, जिसकी वजह से ये शुगर लेवल को भी तेजी से बढ़ाती है।