इस्लामाबाद. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी तेल खरीदने की वजह से पिछले महीने भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी का टैरिफ लगाया है। इसके बाद से दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव है। इसी बीच, अमेरिका ने नया दांव चलते हुए पड़ोसी देश पाकिस्तान पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। अमेरिका की एक धातु कंपनी ने सोमवार को पाकिस्तान के साथ 50 करोड़ डॉलर के खनिज निकासी से जुड़े निवेश समझौते पर दस्तखत किए हैं।
पाकिस्तान के फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन, जो महत्वपूर्ण खनिजों का सबसे बड़ा खननकर्ता है, ने मिसौरी स्थित यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स के साथ सहयोग योजनाओं के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के मुताबिक, पाकिस्तान में एक पॉली-मेटैलिक रिफाइनरी भी स्थापित की जाएगी। यह समझौता पिछले महीने वॉशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच एक व्यापार समझौते पर पहुँचने के बाद हुआ है। पाकिस्तान को तभी से उम्मीद थी कि उसके खनिजों और तेल भंडारों के दोहन के लिए अमेरिकी कंपनी निवेश करेगी। यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स महत्वपूर्ण खनिजों का उत्पादन और उसकी रिसाइकिलिंग करती है
एक अन्य समझौते में पाकिस्तान के नेशनल लॉजिस्टिक्स कॉर्पोरेशन के साथ पुर्तगाल की इंजीनियरिंग और निर्माण कंपनी मोटा-एंगिल ग्रुप के बीच हस्ताक्षर किए गए हैं। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के दफ्तर की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि उन्होंने अमेरिकी स्ट्रेटेजिक मेटल्स और मोटा-एंगिल ग्रुप के प्रतिनिधिमंडल के साथ पाकिस्तान के तांबे, सोने, दुर्लभ मृदा और अन्य खनिज संसाधनों पर बातचीत की है।
बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने खनिज प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने और खनन से जुड़ी बड़े पैमाने की परियोजनाएँ शुरू करने की इच्छा व्यक्त की है। बयान में आगे कहा गया है, “यह साझेदारी पाकिस्तान से आसानी से उपलब्ध खनिजों, जिनमें एंटीमनी, तांबा, सोना, टंगस्टन और दुर्लभ मृदा तत्व शामिल हैं, के निर्यात के साथ तुरंत शुरू होगी।” पाकिस्तान स्थित अमेरिकी दूतावास ने भी एक बयान में कहा, “यह हस्ताक्षर अमेरिका-पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती का एक और उदाहरण है जिससे दोनों देशों को लाभ होगा।”
बता दें कि इस साल की शुरुआत में शहबाज शरीफ़ ने दावा किया था कि पाकिस्तान के पास खरबों डॉलर मूल्य के खनिज भंडार हैं। उन्होंने ये भी दावा किया था कि अगर खनिज क्षेत्र में विदेशी निवेश होते हैं तो उनका देश कंगाली और वित्तीय संकट से उबर सकता है। इतना ही नहीं उन्होंने दावा किया था कि इस निवेश से पाकिस्तान अपने विदेशी कर्जों को भी चुकता कर सकता है लेकिन इस निवेश के बावजूद शरीफ को बड़ी चिंता सता रही है।
शहबाज शरीफ की चिंता आंतरिक से लेकर बाहरी तक है। दरअसल, पहली चिंता तो यह है कि पाकिस्तान की अधिकांश खनिज संपदा उग्रवाद प्रभावित दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में है, जहाँ अलगाववादियों ने पाकिस्तानी और विदेशी कंपनियों द्वारा संसाधनों के दोहन का विरोध किया है। इससे पहले चीनी कंपनियों को भी अलगवावादी झटका दे चुके हैं। अगस्त में, अमेरिकी विदेश विभाग ने बलूचिस्तान नेशनल आर्मी के अलगाववादी समूह और उसकी लड़ाकू शाखा, मजीद ब्रिगेड को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया था।
अफ़गानिस्तान की सीमा से लगे दक्षिणी सिंध, पूर्वी पंजाब और उत्तर-पश्चिमी ख़ैबर पख्तूनख्वा में भी तेल और खनिज भंडार पाए गए हैं। कई कंपनियों ने खनन क्षेत्र में पाकिस्तान के साथ पहले ही समझौते किए हैं। इनमें कनाडाई कंपनी बैरिक गोल्ड भी शामिल है, जिसके पास पहले से ही बलूचिस्तान में रेको दिक सोने की खदान में 50% हिस्सेदारी है। पाकिस्तानी पीएम को डर है कि अगर अमेरिकी कंपनी ने खनन कार्य शुरू किया तो बलूच विद्रोही उसमें टांग अड़ा सकते हैं।
शहबाज शरीफ की दूसरी बड़ी चिंता उनका पुराना दोस्त और मददगार चीन है। दरअसल, चीन और अमेरिका के बीच न सिर्फ व्यापार युद्ध छिड़ा है बल्कि क्षेत्रीय प्रभुत्व और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बने रहने की लड़ाई जारी है। भारत और अमेरिका के बीच जब टैरिफ पर ठनी तो भारत और चीन की दूरियां मिटने लगीं और पाकिस्तान चीन से दूर होने लगा। ऐसे में पाकिस्तान को डर सता रहा है कि अमेरिकी निवेश से चीन को बुरा न लगे क्योंकि आज भी पाकिस्तान में चीन सबसे बड़ा निवेशक और कर्जदार है। अगर चीन पाकिस्तान से नाराज हुआ तो उसका भारी भरकम कर्ज चुकाना मुश्किल हो सकता है और यही बात शरीफ को टेंशन दे रही है।