हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की तरह पितरों को भी खास दर्जा दिया गया है। पितृ पक्ष में लोग पितरों की तृप्ति के लिए और उनके प्रति अपनी श्रद्धा भाव जाहिर करने के लिए तर्पण, पिंडदान व श्राद्ध करते हैं। अगर आप की कुंडली में पितृ दोष है तो इसे दूर करने के लिए यह पखवाड़ा सबसे उत्तम है। इसमें पितरों को खुश कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए आप कुछ खास उपाय कर सकते हैं। सनातन धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व है। पितृ पक्ष 8 सितंबर से 21 सितंबर तक है।
पितृदोष का दुष्प्रभाव: ज्योतिषाचार्य पं. विकास शास्त्री के अनुसार जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है उन्हें संतान सुख आसानी से नहीं मिलता। उनकी संतान बुरी संगत में पड़ जाती हैं। नौकरी अथवा व्यापार में परेशानियां आती हैं। हर काम बाधित होते हैं। परिवार में क्लेश रहता है। गरीबी और कर्ज दबोचे रहते हैं।
पितृदोष के निवारण : पितृदोष समाप्त करने के लिए पितृपक्ष में घर की दक्षिण दीवार पर पूर्वजों की तस्वीर लगाएं। उसके समक्ष दीप, धूप या अगरबत्ती जलाएं। रोजाना घर में शाम को दक्षिण दिशा में तेल का दीपक जलाएं। पितृ शांति के लिए नित्य दोपहर पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। पीपल की जड़ में गंगाजल में काला तिल, दूध, अक्षत और फूल मिलाकर चढ़ाएं। पितृ दोष के दुष्प्रभाव से बचने के लिए पंचमुखी, सातमुखी, आठमुखी और बारहमुखी रुद्राक्ष एक साथ धारण करना चाहिए। अमावस्या पर पितरों के निमित्त भोग लगाएं। पितृस्तोत्र का पाठ करें।
श्राद्ध तिथियों का क्रम-
7 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
8 सितंबर-प्रतिपदा
9 सितंबर- द्वितीया
10 सितंबर- तृतीया
11 सितंबर- चतुर्थी व पंचमी
12 सितंबर- षष्ठी
13 सितंबर- सप्तमी
14 सितंबर- अष्टमी
15 सितंबर- नवमी
16 सितंबर- दशमी
17 सितंबर- एकादशी
18 सितंबर- द्वादशी
19 सितंबर- त्रयोदशी
20 सितंबर- चतुर्दशी
21 सितंबर-सर्वपितृ अमावस्या।