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ना जाने इस गांव में कैसा खौफ? होली के दिन घर में छुप जाते हैं लोग, गांव के एक शख्स ने खोले सारे राज

खरहरी और धमनागुड़ी दोनों ही गांव की आबादी लगभग तीन हजार है. ऐसा नहीं है कि इस गांव में लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं. गांव की बड़ी आबादी हाई स्कूल पास है. नौजवान लड़के-लड़कियां कॉलेज भी पढ़ने जाते हैं.

 छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में खरहरी और धमनागुड़ी नाम के दो गांव ऐसे हैं, जहां पिछले 200 सालों से होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. इन गांवों में होली के दिन सन्नाटा पसरा रहता है और लोग अपने घरों में दुबके रहते हैं. इसकी वजह एक अजीबोगरीब खौफ है, जो इन गांवों के लोगों के दिलों में बसा हुआ है.
 ग्रामीणों का मानना है कि अगर किसी बाहरी शख्स ने उन्हें होली के दिन रंग या गुलाल लगा दिया, तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. उनका कहना है कि होली जलाने और रंग गुलाल खेलने से गांव पर दैविय प्रकोप आ सकता है. इसी आशंका के चलते इन दोनों गांवों में होली के मौके पर वीरानी छाई रहती है.
 खरहरी और धमनागुड़ी दोनों ही गांव की आबादी लगभग तीन हजार है. ऐसा नहीं है कि इस गांव में लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं. गांव की बड़ी आबादी हाई स्कूल पास है. नौजवान लड़के-लड़कियां कॉलेज भी पढ़ने जाते हैं, लेकिन वे घर के बड़े-बुजुर्गों के निर्देशों का उल्लंघन नहीं करते हैं.
 गांव के बुजुर्ग इस बात की पुष्टि करते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी वे ये देखते आए हैं कि गांव में ना तो होलिका दहन होता है और ना ही कोई ग्रामीण रंग गुलाल खेलने की हिम्मत करता है.
 छत्तीसगढ़ अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश मिश्रा इसे बकवास बताते हैं. उनके मुताबिक, 200 साल पहले की कोई घटना मान्यता बन गई होगी, लेकिन यह सुनी-सुनाई घटना होगी. इसका कोई परीक्षण और प्रमाण स्पष्ट नहीं है. उनके मुताबिक, यह अंधविश्वास के अलावा कुछ और नहीं है.
 यह अंधविश्वास इन गांवों के लोगों के जीवन का एक हिस्सा बन गया है और वे सदियों से इसका पालन करते आ रहे हैं. होली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इन गांवों में डर और आशंका का माहौल बना रहता है.

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