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जीवित व्यक्ति क्यों करते हैं अपना पिंडदान, क्या हैं इससे जुड़ी सनातन मान्यताएं

जिस प्रकार हिंदू धर्म में देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ किया जाता है ठीक उसी प्रकार पितरों का सम्मान और उनकी आत्मा की शांति के लिए भी कई धार्मिक अनुष्ठान जैसे श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य किए जाते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने पर पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कुछ विशेष परिस्थियों में ऐसा देखा जाता है कि लोग अपना पिंडदान खुद करते है । स्वयं जीवित व्यक्ति अपना पिंडदान करता है, इसे आत्म पिंडदान या जीवित पिंडदान भी कहा जाता है।आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि जीवित पिंडदान क्या होता है और इसके करने से क्या लाभ मिल सकते हैं।

जानिए क्या होता है जीवित पिंडदान

गरुड़ पुराण के अनुसार माना गया है कि पिंडदान मृत पूर्वजों के लिए किया जाता है ताकि उनकी आत्मा को पितृ लोक में शांति मिले और पितृदोष से मुक्ति हो। इसीलिए पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष महत्व है।

मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और उनकी आत्मा भी तृप्त होती है जब उनका श्राद्ध सही तरह से होता है।

यह माना जाता है कि जीवित पिंडदान करने से व्यक्ति अपने पिछले कर्मों के दोषों से मुक्ति पा सकता है और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकता है। यह एक प्रकार का आत्म-शुद्धिकरण और पितृऋण से मुक्ति का उपाय माना जाता है।

क्यों किया जाता है आत्म पिंडदान

आत्म पिंडदान का महत्व होता है कि अपनी मृत्यु से पहले व्यक्ति अपने कर्म से आत्मा को शांति प्रदान करना ताकि मृत्यु के बाद परिवार पर कोई बाधा न आए, इसलिए जीवित पिंडदान का कर्म किया जाता है।

जीवित पिंडदान कब और कहां किया जाता है

पितृदोष के कारण अगर किसी के जीवन में बार-बार असफलताएं, स्वास्थ्य समस्याएं, या आर्थिक परेशानियां आ रही हों। गया जो बिहार में स्थित है वहां फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के पास जीवित पिंडदान की प्रथा प्रचलित है। जीवित पिंडदान जीवन के पापों से मुक्ति के लिए यह कर्म करते है। आपको बता दें, गया के अलावा,जीवित पिंडदान हरिद्वार, प्रयागराज, या त्र्यंबकेश्वर में भी यह किया जा सकता है।

जीवित पिंडदान कैसे किया जाता है

जीवित पिंडदान में तिल, जौ, और चावल से बने पिंडों को जल में अर्पित किया जाता है। तर्पण के समय भगवान विष्णु, यमराज, और पितरों का ध्यान किया जाता है। मंत्र जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या पितृ तर्पण मंत्रों का जाप किया जाता है।
इस पिंडदान के बाद गाय, ब्राह्मण, या गरीबों को दान भी दिया जाता है। इसमें अन्न, वस्त्र, तिल, और स्वर्ण दान शामिल हो सकते हैं।

जीवित पिंडदान करने से मिलते है ढेरों फायदे

जानकार बताते हैं कि, जीवित पिंडदान करने वाले व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक लाभ मिलता है। भक्ति और श्रद्धा के साथ किए जाने वाले इस अनुष्ठान से व्यक्ति के मन में सकारात्मक सोच और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है। ध्यान, प्रार्थना और श्रद्धा का समावेश मन को तनावमुक्त करता है और जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

बताया जाता है कि, जीवित पिंडदान केवल पितरों की आत्मा को प्रसन्न करने तक सीमित नहीं है। यह परिवार और वंश की सुरक्षा का साधन भी है। इसे नियमित और श्रद्धा के साथ करने से न केवल वर्तमान पीढ़ी लाभान्वित होती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी जीवन मार्ग में सुगमता और कल्याण अनुभव करती हैं।

जीवित पिंडदान करने के लिए क्या है सही समय

जीवित पिंडदान पितृपक्ष के दौरान करना सबसे शुभ माना जाता है। इसके अलावा जन्मदिन, पुण्यतिथि या किसी विशेष संकट के समय भी इसे किया जा सकता है। जीवित पिंडदान हमें सिखाता है कि अपने पूर्वजों का सम्मान करना केवल धर्म नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति लाने का साधन भी है।

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